कई बार कुछ ऐसा होता हैं....जहां समझ की समझदारी के परकच्च उ़ड़ जाते हैं....उधर समझदारी यही होती है की शांत रहो..नही तो कुछ शब्द बाण की तरह अगात ही देते हैं..
जीवन में यह सवाल जरुर उठते हैं की गलती हमारी होती है या गलती को समझने की कोशिश ही नहीं करना चाहते..लोग गलती को समझने से पहले ही उस का हल ही ढ़ूढ़ कर बैठ जाते है ...किसी गलती को स्वीकार नही करते या करना नही चाहते ..
सवाल बड़ा टेढ़ा है ..फिर भी कभी-कभी सोचना ही होता है..
की इज्जत मजाक न बन जाये....
जब यह सवाल जहन से नीचे न उतरे तो लोगों की सोच किधर तक सोच सकती है ..वहां तक उस सोच को सोचना जरुरी हो जाता है....नही तो शरीर बहार से सही होता हैं ..परन्तु दिमाग में सवाल ही घूमते हैं....
सवाल घूमने से दिमाग की कसरत होती हैं इसलिये सवाल घूमने जरुरी हैं............
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