Tuesday 18 November 2014

चाटुकारिता की सीमा

मीडिया की जो कल्पना आम जन करते हैं ..मीडिया उससे कोसों दूर है...जब हम मीडिया कि हवा को बाहर से महसूस करने कि जगह ..उसके साथ काम करना शुरु करते है ..तो मीडिया का सही रुप प्रदर्शित होता है ..... मीडिया है क्या ?... साधारण से शब्दों में परिभाषित करने की कोशिश करे तो ऐसी वेश्यावृति जो शरीर की नही...पर दिमाग की वेश्यावृति की जाती है ...जिसका सौदे का दल्ला उस कंपनी को चलानेवाला मलिक होता है...जिसे दह कि जगह दिमाग का सौदा करना होता है...
 मलिक (दल्ला) भी ऐसा जिसे सौदे में क्या बेचना हैं यह नही पता ...बस यह पता होता है कि सौंदे के लिए ग्राहक मिल जाए.....उसकी तलाश में ठोकर खाता है...ठोकर में साथ देने के लिए चाटुकारों की टीम होती है...जो पत्रकारिता के अह को मार दल्लों कि पत्रकारिता शुरु करने लगते है ....फिर कहते है पत्रकारिता तो यह होती है ...जहाँ दल्लेबाजी के गुण दिखें ...नही तो पत्रकार कि अह की सीमा जो टूट जायेगी ....
  पत्रकार बेचारा करे भी तो क्या करे उसे अपने परिवार को जो पालना है ....नही तो उसे बाबाओं कि तरह जीवन जीना पड़ेगा ...जो हर कोइ नही कर सकता..



(विचार मेरे निजी है जिसको दिल पर ना लें...)

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