Monday 1 December 2014

सत्ता कि लालसा.....

सत्ता का लालच कोई कभी नहीं छोड़ता..जिसके पास सत्ता है वह सियासत के पाले मेें गिने जाता है ..जिसके पास नही वह सत्ता से अलग में गिने जाते है ..समाज कि कड़ी भी ऐसी ही सत्ता के इर्द गिर्द घुमती है....जहां जिसके पास पद , प्रतिष्ठा, धन, शौर्य है वह महान है...सत्ता के बल पर सब महान गिने जाते है ...जहां सत्ता का सिक्का बोलता हैं ..जिस दिन सत्ता कि छुटी होती है उसी दिन से सत्ता के धरासायी होने का असर दिखना शुरु हो जाता है...सत्ता समाज में आदर का भाव पैदा कर देती है...उस के पीछे ढकोसले कि एक ओर सत्ता काम करती है ...
चलिये राजनीति के रुप में सत्ता को समझने का प्रयास करते हैं.. राजनीति सत्ता कि सी़ढ़ी का पहला द्वार है.. जिस मैदान से सत्ता के सत्ता रुपी अस्त्र  के इस्तेमाल कि शुरुवात होती है.... सत्ता का प्यार कहीं बुनियाद को दाव पर रख नयी बुनियाद कि नींव रखता है ...उस नींव कि जड़ कहां तक फैली होती है उसका अनुमान सत्ता के पाने के बाद समझा जा सकता है...सत्ता के खेल में कहीं बाजी दाव पर होती है ..जहां जमीर का सौदा भी बोली में आ जाता ...जमीर को मार ही सत्ता के सुख कि अनुभूति को प्राप्त  किया जाता है..सत्ता के यह कुछ गुण है..
सत्ता ऐसे ही दाव पर अपने वजूद को कायम करती है..सत्ता के लाभ पर राजनीतिक दल एक पाले को बदल दूसरे में अपना स्वार्थ कि पूर्ति करते है...जहां विचारधारा के कट्टर विरोधी भी मित्र बन जाते है...राजनीति में ऐसे कहीं उदाहरण देखने को मिल जाते है ... हरियाणा में राव इंद्रजीत सिंह...वही दूसरी ओर चौधरी बीरेंद्र सिंह...चाहे कोई कितना भी बड़ा दिग्गज हो सत्ता कि लालसा उसके विचारों के जमीर को मार ही देती है..सत्ता का लालच है ही ऐसा..
यह तो रहा राजनीति के कुछ उदारहण ..जब यही सत्ता आम जन के जीवन पर हो तो सत्ता का लालच बहुत गंभीर रुप धारण कर लेता है...सत्ता कि लालसा में इंसानियत के मर्म कि बलि लागाई जाती हैं..जहां सब कुछ का अंत होता है... उस अंत से निकलना मुश्किल हो जाता ...उस चोट के घाव बाहरी रुप में नही होते ..पर घाव कि चोट इंसानियत के सब पयदान तोड़ अपने होने का एहसास करता हैं...एेसी चोट ना गवारा होती है ...और ना कभी उम्मीद कि जाती है...यही सत्ता है ..जिसका मोह सत्ता होना कहलाती है.... सत्ता ...सत्ता है भाई...

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