Wednesday 28 June 2023

बहुत दिन से दो बातें लिखने की सोच रहा था ..पर वक्त ही नहीं मिला..

आज कुछ वक्त मिला तो लिख रहा हूं...

कुछ दिन पूर्व मेरी शादी की पांचवी वर्षगांठ थी .. मेरी धर्मपत्नी ने कहा आपको इस बार कोई गिफ्ट नहीं दिया .. और दूसरे दिन देखता हूं कि मेरी पत्नी ने मेरे पिता की एक फोटो फ्रेम मुझे दिया.. पिता के साये को गये लगभग १३ वर्ष हो गए.... मैंने कभी पिता की तस्वीर को अपने साथ नहीं रखा.. हां गुड़गांव और दिल्ली में एक फ्रेम पिता की तस्वीर का था .. पर २०१५ से छत्तीसगढ़ आने के बाद अपने पास कोई तस्वीर पिता की नहीं रखी... क्योंकि जब भी पिता की याद आती है तो मन बेचैन हो जाता है... शायद इस बेचैनी से भागने की कोशिश करता हूं... और बचपन की सुनहरी यादें परेशान करती है... इसलिए हमेशा तस्वीर से दूर रहने का सोचता रहा हूं... पर जब धर्मपत्नी ने मुझे पिता की एक तस्वीर का फ्रेम दिया तो मेरे पास शब्द नहीं थे...


दूसरा हिस्सा कुछ दिन पूर्व मेरा पुत्र विभु अपने दादी के घर से आया और साथ में एक खिलौना लेकर आया ...यह खिलौना १९९७ का है जब पिता ने मुझे एक वीडियो गेम दिया था.. इस खिलौने में बैटरी नहीं थी ..बैटरी डाली तो यह खिलौना आज भी चालू स्थिति में है .....जब मैंने अपने बेटे को कहा कि बेटा यह तेरे दादा ने मुझे दिया था तो उसके पास एक अलग खुशी थी... जिसे शायद शब्द न दे पायूं.. और उस खुशी में शायद पिता को देखने का अलग सकून था....




यह सब यादों का खजाने है जहां बहुत कुछ है ... बस लिखने को हम शब्द नहीं दे पाते है....