Sunday 18 January 2015

राजनीति की माटी

माटी का नाम लेते ही गांव की जो अनुभूति जहन में आती ...उसे क्या राजनीति की माटी से समझा जा सकता ..नही ना ...
राजनीति और गांव की माटी दोनों में अंतर है.. एक में स्वार्थ है ..तो एक में प्रेम...
दिल्ली की राजनीति माटी में जिस तरह के द्वंद युद्ध को देखा जा सकता शायद ही ऐसा युद्ध और राजनीति  देखने को मिलें...
सामाज को भलाई की और मोड़ने वाले ही राजनीति का गंदा खेल खेलने लगे तो लोगों में आक्रोश होना स्वाभाविक है ...
कभी किरण बेदी ..सामाज को भ्रष्टाचार मुक्त करनें की कसम खाती थी मौका देख ..राजनीति की नौका में सवार हो गई ...कभी भाजपा पार्टी पर आरोप जड़ा करती थी ...आज उसी नौका के गुणगाण गा रही  है.. राजनीति की माटी का रंग निराला है जो किसी को भी अपनी ओर खींच लेता है..
शाजिय़ा इल्मी ने भी मौका देख चौका लगा ही लिया ...राजनीति की तुलना भुख से करें तो कोई गलत नही होगा....राजनीति एक भुख ही ...जो स्वार्थ ..लालसा ...इच्छा हैं.....


Friday 16 January 2015

मुझे सत्ता की लालसा नही..

मुझे सत्ता की लालसा नही ...सत्ता अपने आप मोह करा देती है...कहने में बड़ा अच्छा लगता है...दिल्ली के चुनाव में जो अब हो रहा है ..सत्ता का मोह है या फिर एक अंह का द्वंद ....जहां आप के केजरीवाल नाम से किरण बेदी के मन में उबला पैदा हुआ ...जो सामाजिक कार्य छोड़ राजनीति की हवा को महसूस करने के लिए सत्ता की लालसा को भाजपा में तलाश करनें लगी ...यह सारे एक तर्क है जो किरण बेदी के भाजपा में जाने पर लोग के जहन पर पानी के झींटे की तरह आ रहे है ..जो नींद से उठाने की कोशिश कर रहा है ..मगर नींद को पूरी तरह खोल नही पा रहा है .
राजनीति इसी तरह लालसा बनाती है ...जिसे मोह कहे सकते है...