Saturday 14 April 2018

कलम को बस चलने दो...

कभी-कभी बिना सोचे कलम को चलने दिया जाता है.....चलने इसलिए दिया जाता है... क्योंकि दिमाग का बोझ कम हो सके... पर बहुत कुछ सोचने और लिखने को होता है... पर लिख नहीं पाते है। समाज में बहुत से विषय है जिस पर कलम रोज लिखने को कहती है ...पर लिखने की तीव्रता शांत सी हो गई है। जिसमें कम विचारों का बोझ है ...जो बिना धार वाली तलवार जैसी मालूूम होती है। लिखना पसंद है ... पर ऐसा लिखना जिसमें मन बैचेन न हो ..बल्कि जिसे लिखने के बाद मन शांत हो सके। ऐसे लिखने के लिए कलम चलनी चाहिए.. पर ऐसा होता नहीं है।
कलम शांत होने के लिए नहीं हो सकती ...वह विचारों को और अधिक विभाजित कर देती है.. वह उतनी ही तीव्र गीत से मस्तिष्क पर बोझ डालती है। जिसमे लिखने की कला का कौन सा विचार काम करता है.. नहीं पता होता हैै...पर मन के कोने पर विचारों की उथल-पुथल परेशान जरुर करती हैै।
समाज को जितना अधिक समझने का प्रयास करते है...  वह समाज वैसा ही जवाब देता है की दुनिया ऐसी क्यों है?...... कभी-कभी विचार भी स्वंय में सवाल पूछने लगते है की यह जो सोच रहा हूँ... वह सही है... सही सोचता हूँ.. तो क्रिया भी वैसी ही हो..... पर बार-बार सोच हारने लगती है .. मन का कोना एक ही सवाल का उत्तर यह कहकर देता है कि इससे बेहतर है.. और कुछ जिन्दगी में सपने हैै... जो कभी हारने नहीं देते है.. शायद बहुत कुछ है जिसे सीखने की ललक अभी बाकि है .. जिसे ता उम्र सीखना है..
हार होने के बाद फिर नया रास्ता तय होता है और वह अधिक तीव्र गति से मस्तिष्क को सोचने देगा .. ऩई उर्जा से कार्य करने को कहता है..
फिर नये सपने को पंख देता है .. हार फिर कुछ नया अनुभव देता है.. नया तय करने को कहता है..
मंजिल को जीतना ढूंढते है... वह उतना अधिक भटकाव देगी ..
पर मंजिल जरुर मिलेगी...