Thursday 27 November 2014

वक्त-वक्त कि बात है ....

वक्त-वक्त कि बात है ...यह बात लोगों के जहन से कई बार सुनी होगी ...यह बात जितने कम शब्दों में उसका महत्व भी उतना ही बड़ा है...लोगों के साथ होता भी ऐसा ही...वक्त कब करवट खाये और कब नही यह बड़ा खेल है...जिन्दगी में कोई कभी राजा होता है ..तो  कोई कुछ पल में फकीर ..इसलिए तो कहते है वक्त-2 कि बात है...
उदारहण के रुप में एक प्रधानमंत्री को ही ले लेते है..कभी मनमोहन सिंह वह व्यक्ति होते थे जो  देश के सब फैसले लेते थे...सरकार गई... वक्त गया ..सब बदल जाता है...जब वह प्रधानमंत्री थे ...तो उनका पद बोलता था ...आज वह कुछ नही तो बस वह एक साधारण व्यक्ति के रुप में गिने जाते है...इसलिए तो कहते है वक्त-2 कि बात है..
वक्त कब किस के साथ हो कब नही यह वक्त पर निर्भर  करता है..वक्त कि लकीर किस पर कैसे खींचेगी
यह उसका कर्म और किस्मत लिख कर आता है...आज कोई दुखी है... तो उसका वक्त है दुखी होने का ..एक समय बाद वह मुस्कराहट फिर मिलेगी जो उससे वक्त ने छिनना है ..बस कुछ वक्त बनता ही है ..जीवन को कुछ सीखानें के लिए ..ताकि उस वक्त को भी महसूस कर सकें..
बिना महसूस किये उस वक्त को कोइ कभी नही समझ सकता ..जब तक उस परिस्थितियों के साथ खुद ना गुजरें हो...उस एहसास को जब तक अपने से महसूस नही करें .. सब परिस्थितियां कुछ ना कुछ  सीख देती है...

दुसरे के पास उस समय में सांत्वना देने के सिवा ओर कुछ नही होता ..ओऱ वह कर भी क्या सकता है इससे ज्यादा...दोषी परिस्थितियां होती हैं...इंसान नही...
किसी के शब्दों में...जहां वक्त ने जो निर्धारित किया होता है... वह वहीं पहुंचता ..बस उसकी राह कैसे उसे वहां तक पहुंचायेगी यह उसे नही पता होता ..अंत उसका अपने निर्धारित गंतव्य पर होगा ..जहां सब अच्छे होने कि उम्मीद होती है ..उस उम्मीद को कभी किसी को नही छो़ड़नी चाहिए..
इसलिए तो कहते है वक्त-2 कि बात है.....



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