रुकने के लिए कुछ नही होता है..सृष्टि का विधान है ....जो आया है उसे जाना है..
हमारे पास भी ऐसा क्या है ....जो यहीं रुक जाता है ..कहने को तो कुछ नही और सोचने को बहुत कुछ....
विचारों की ऐसी ही गुत्थागुत्थी जहन में दोड़े तो...
विचारों में कैसे शुद्धता हो सकती हैं...जहन ऐसे ही सवालों के जाल में फंस कर गुत्थ जाता हैं..
आप अपने से पूछों की क्या है सोचने को
क्या है परकने को...
जहन आपका विचार आप के ...
फिर क्यों भागने कि कोशिश कर रहा..
जो उलझन थी वह उलझ ही गई है...
जो सुलझनी थी वह सुलझेंगी ही है...
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