जैसे-जैसे सर्दी की ठंड हवा तेज होती है... तो सर्दी के एहसास होने का पता चलता हैं.... वैसे ही जिन्दगी के कुछ चरण (फेस) धीरे-धीरे अपने होने का अर्थ बताते है....होना भी चाहिये उसे समझने और न समझने की क्षमता...नही तो जिन्दगी निरस होने लगती है...कई कहानी जीवन के साथ जुड़ी है ..किसी कहानी का रुप, रंग,भेष कोइ भी आकार में हो सकता बस पात्र बदलते रहते हैं... उस पात्र के होने पर उस पर क्या बीतती है यह उस किरधार को हो ही पता होता की वह क्य एहसास कर रहा है ....किस कारणों से कहानी को सहन कर रहा होता हैे....आज की कहानी की हवा इधर तक ही आगे की कहानी लिखेंगे कभी ओर......
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