आज कहीं दिन बाद कुछ तस्वीरों पर नजर गई, सोच रहा हुँ। समय की रफ्तार कितनी गति से कितना कुछ बदल देता हैं। सोच कर हर यादें आज अजीब सी मायूसी मन को करा रही है। कुछ पंक्ति लिख रहा हुँ......
जब सोचा अपने बिते दिनों को,
मन में कही सवाल खड़े हो गये।
हर सवाल अपने अन्तर द्घंद से ,
सवालों को व्यंग छोड़ गये।
उस व्यंगो की माया अपने में,
कहीं कल्पना के रंग छोड़ गये।
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कभी-कभी ऐसी तस्वीरों में रंग होते हुये भी रंग फिकें होतें हैं।................
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