Monday 23 January 2017

क्या शहर बदल देता है?


शहरों की चकाचोैंध हमेशा से ही लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रही है। जहां की रौनक लोगों को उसी धरातल पर बसने की बेबसी पैदा करती है। यह बेबसी डर से निर्मित नहीं होती है, इसके बीज को अंकुरित होने में वही पानी और खाद्य होती है जिसे हम मस्तिष्क में उपजने का मौका देते है।
शहरों का अपना रूप है, अपना आकर्षण, अपना सौंदर्य, अपनी चमक जो व्यक्ति को एक बार आने के बाद बसने का मौका ही नहीं बल्कि एक उस समाज से रूबरु कराती है, जहां भीड़ है पर लोग शांत रहना जानते है। वही भागती जिन्दगी जीवन की एक परिभाषा होती है। शहरीपन एक मद पैदा करता है। मद हमेशा से आवेश में बौखलाहट पैदा करने का काम करता है। वही बौखलाहट शहरी जीवन का एक अर्थ होता है।
शहर के कौन से कोने से क्या लागव हो जाए पता ही नहीें चलता। ऐसे लगाव में सब अपना सा लगता है। जिस गांव, मोहल्ले, गली की रौनक को शहरों में महसूस करने लगते है। शहरों में अपने होने की चर्चा करते है। आधे में पूरे होने की जिद्द पैदा करते है। शहरी चकाचौंध में कभी-कभी अपने आपको अपने से अलग कर देते है। जिसकी रोशनी केवल आँखों में कल्पना का काला चश्मा बांधने का काम करती है। जिस दिन वह काला चश्मा आँखों से उतरता है... उस दिन हम अपने आपको दूर महसूस करते है।
क्यों शहरों की ऐसी छवि जहन में तैयार होती है। छवि का आकार विचित्र कल्पना से निर्मित होता है जिसे जितने भी कोण से देखते है, वह उतना ही अलग दिखता है।
शहरों का न पानी अच्छा होता है, ना हवा फिर भी हर कोई इसी शहर में रहने की इच्छा करता है। केवल पानी और हवा का ही अंतर नहीं व्यक्ति के विचारों को शहर परिवर्तित कर देता है। विचारोें की काया में बहुत कुछ बदल जाता है। जिसमें व्यक्ति को स्वंय से बड़ा कुछ नहीं दिखता है, केवल व्यक्ति के जहन में अधिक से अधिक इच्छा पूरी करने की ख्वाहिश पलती है, जो जहन को ऐसे परिवर्तित कर देती है कि इंसान स्वंय के रिश्तों में भी लाभ की तलाश करता है। केवल व्यक्ति स्वंय में सिमटने की कोशिश करता है। सब कुछ बदलने की कोशिश करता है। हम चाहकर भी इच्छा को रोकते नहीं बस शहरों की चकाचौंध में रिश्तों की तलाश करने लगते है, जो स्वंय में पूर्ण होने की आभा दे सके।
क्या है शहरों के मिट्टी में, हवा मेंपानी में जो बदलाव पैदा करता है। क्या है? जो व्यक्ति में स्वंय का ही बोध करता है। लोग केवल दौड़ लगा रहे होतें हैं... कोई नौकरी के लिए, कोई पढ़ने के लिए, कोई सुकून की तलाश के लिए। इसी दौड़ में एक दिन शुरू होता है अध्यात्म का खेल। जो दौड़ते जीवन को शांति देने का ढोंग करता है। जो दिलासे बांधने की जमीन देता है। अध्यात्म शहरी जीवन में बदलाव की किरण का काम करता है जिसे केवल महसूस कर सकते है, लेकिन बदलता क्या है?
क्या शहर बदल देता है?


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